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Dinesh Soni

Dinesh Soni

Personal info

Dinesh Soni

Hello Friends, i am a studying M.B.B.S. I know that health is a very personal, private subject, and we maintain Every POst strict privacy policy in Whole Site.

Birthday: 24 Feb 1993
Website: www.healthylifeandshape.blogspot.com
E-mail: dsdineshsoni93@gmail.com

Health Is Wealth

Some Daily Tips For Healthy Life


Womens Health

  • 2016-future

    Tips For Woman

    Women's Health is for the woman who wants to reach a healthy, attractive weight but doesn't equate that with having thighs the size of toothpicks. We know that exercising and eating well will make you happier and stronger.

  • 2011-2014

    Health Benefits of Yoga

    Yoga increases flexibility and reduces stress, but the practice can do more than help you twist your body into pretzel shapes and find inner peace. These hidden benefits will help you in the kitchen, office and bedroom.

  • 2009-2011

    Benefits of Exercise

    Combining exercise with a healthy diet is a more effective way to lose weight than depending on calorie restriction alone. Exercise can prevent or even reverse the effects of certain diseases. Exercise lowers blood pressure and cholesterol, which may prevent a heart attack.

How Much Calories You Need

  • 2015

    Amount of Calories You Burn

    The average adult male who doesn’t exercise requires approximately 2,200 calories a day to maintain his average weight. A female needs about 1,800 calories to maintain her weight.So Eat Healthy and Do Exercise Daily.

  • 2013-2014

    Load up on vitamin C @

    We need at least 90 mg of vitamin C per day and the best way to get this is by eating at least five servings of fresh fruit and vegetables every day. So hit the oranges and guavas.

  • 2009-2013

    Laugh and cry @

    Having a good sob is reputed to be good for you. So is laughter, which has been shown to help heal bodies, as well as broken hearts. Studies in Japan indicate that laughter boosts the immune system and helps the body shake off allergic reactions.

Top 6 Rules of healthy Life

Daily Workout
Add variety
Healthy Diet
Get good sleep
Eat Vitamins Food
Drink Enough Water

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I Hope That Will Help You


Friday 12 February 2016

आंखों के रोग aankh aana ( home remedies for Conjuntivitis )

परिचय :
       आंखों का लाल होना, आंखों में कुछ अटका हुआ महसूस होना और दर्द होना ही इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। इस रोग में आंखों को खोलने से भी दर्द होता है। आंखों पर ज्यादा रोशनी पड़ने से या ज्यादा बोझ डालने से दर्द और बढ़ जाता है। इस रोग के बढ़ने से आंखों से पानी निकलने लगता है और गाढ़ा-गाढ़ा

 आंखों का लाल होना, आंखों में कुछ अटका हुआ महसूस होना और दर्द होना ही इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।पदार्थ भी निकलता है जिसे गीढ़ (कीचड़) कहते हैं। यह कीचड़ रात में ज्यादा निकलने से पलकें चिपक जाती हैं।

कारण :
   छोटे बच्चे आंखों के रोग की बीमारी से ज्यादा पीड़ित होते हैं क्योंकि छोटे बच्चे धूप या किसी चीज की परवाह किये बिना देर तक खेलते रहते हैं चाहे सर्दी हो या गर्मी उन्हें किसी की परवाह नहीं होती है। इसी कारण से बाहर खेलते समय धूल-मिट्टी के कण आंखों में गिर जाने की वजह से आंखों में दर्द होता है और सूजन आ जाती है। वायु प्रदूषण से आंखों को बहुत नुकसान होता है। सड़क पर गाड़ियों के जहरीले धुंए से भी आंखों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। \n

लक्षण :
    यह संक्रामक (छूने से फैलने वाला) रोग है यह एक बच्चे से दूसरे बच्चे में तेज गति से फैलता है। घर में किसी रोगी के तौलिए या रूमाल के इस्तेमाल से भी आंखों में रोग फैलता है। इस रोग में आंखों में सूजन आ जाती है और आंखें लाल हो जाती हैं। पलकों के किनारे पर कीचड़ दिखाई देता है। सूरज की रोशनी में रोगी बच्चे को आंखों को खोलने मे बहुत दर्द और जलन महसूस होती है जब कोई रोगी बच्चा रात को सोकर सुबह उठता है तो पूय (गीढ़, कीचड़) के कारण उसकी पलकें खुल नहीं पाती हैं और पलके पूय (गीढ़) से चिपक जाती हैं। आंखों में सूजन होने से बच्चे रात को सो नहीं पाते हैं। बच्चों को ऐसा लगता है कि आंखों में कुछ गिर गया है। रोगी को सिरदर्द भी होता है। आंखों के आगे अंधेरा फैलने लगता है।

विभिन्न औषधियों से उपचार: 

1. शहद :

1 ग्राम पिसे हुए नमक को शहद में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से आंख आने की बीमारी में आराम मिलता है।
चंद्रोदय वर्ति (बत्ती) को पीसकर शहद के साथ आंखों में लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं।
सोना मक्खी को पीसकर और शहद में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से आंख आने के रोग में लाभ होता है।

2. जायफल : जायफल को पीसकर दूध में मिलाकर आंखों में सुबह-शाम लगाने से बीमारी में राहत मिलती है।

3. हल्दी :

10 ग्राम हल्दी को लगभग 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर छान लें, इसे आंखों में बार-बार बूंदों की तरह डालने से आंखों का दर्द कम होता है। इससे आंखों में कीचड़ आना और आंखों का लाल होना आदि रोग समाप्त हो जाते हैं। इसके काढे़ में पीले रंग से रंगे हुए कपड़े का प्रयोग जब आंख आये तब करें। उस समय इस कपडे़ से आंखों को साफ करने से फायदा होता है।
हल्दी को अरहर की दाल में पकायें और छाया में सुखा लें उसे पानी में घिसकर, शाम होने से पहले ही दिन में 2 बार आंखों में जरूर लगायें। इससे झामर रोग, सफेद फूली और आंखों की लालिमा में लाभ होता है।

4. मुलहठी :

मुलहठी को पानी में डालकर रख दें। 2 घंटे के बाद उस पानी में रूई डुबोकर पलकों पर रखें। इससे आंखों की जलन और दर्द दूर हो जाता है।
आंख आने पर या आंखों के लाल होने के साथ पलकों में सूजन आने पर मुलहठी, रसौत और फिटकरी को एक साथ भूनकर आंखों पर लेप करने से बहुत आराम आता है।

5. धनिया : धनिये का काढ़ा तैयार करके अच्छी तरह से छान लें। अब इस काढ़े को बूंद-बूंद करके हर 2-3 घंटों में आंखों में डालें। इससे आंखों को आराम मिलता है। इस काढ़े को आंखों में डालने की शुरुआत करने से पहले आंखों में एक बूंद एरण्ड तेल (कैस्टर आयल) डाल लें। यह आंख आने और आंखों के दर्द की बहुत लाभकारी दवा है।

6. सत्यानाशी :

सत्यानाशी (पीले धतूरे) का दूध, गोघृत (गाय के घी) के साथ आंखों में लगाने से लाभ होता है। यह दूध हर समय नहीं मिलता इसलिए जब यह दूध मिले तो तब इस दूध को इकट्ठा करके सुखाकर रख लें। इसके बाद जरूरत पड़ने पर इसे गोघृत (गाय के घी) में मिलाकर काजल की तरह आंखों में लगाने से आंख आने का रोग दूर होता है।
सत्यानाशी (पीला धतूरा) का दूध निकालकर किसी सलाई की मदद से आंखों में लगाने से आंखों की सूजन और दर्द दूर होता है।

7. ममीरा : ममीरा को पीसकर पलकों पर लगाने से आंखों के सभी रोगों में लाभ होता है।

8. अर्कपुष्पी : आंख आने में अर्कपुष्पी (छरिवेल) की जड़ को पीसकर पलकों पर लेप करने से आंखों के रोगों में आराम मिलता है।

9. पाथरचूर :

पाथरचूर (पाषाण भेद की एक जाति पाथरचूर से अलग) का रस पलकों पर लगाने से आंखों से पानी बहने के समय का दर्द कम होता है।
पाथरचूर (सिलफड़ा) को पीसकर शहद में मिलाकर आंखों में लगाने से पूरा आराम मिलता है।

10. रसौत :

रसौत को पानी में घोलकर आंखों की पलकों पर लगाने से काफी लाभ होता है। नेत्राभिष्यन्द या आंख आने का रोग नया हो या पुराना इससे जरूर लाभ होगा। रसौत के घोल में अफीम, सेंधानमक और फिटकरी को मिलाकर भी लेप किया जा सकता है।  \n
रसौत को घिसकर रात को सोते समय आंखों की पलकों पर लेप करने से लाभ होता है।

11. बेल : नेत्राभिष्यन्द या आंख आने पर लगभग 7 मिलीलीटर की मात्रा में बेल के पत्तों के रस को रोगी को सुबह-शाम पिलायें और उसके पत्तों का लेप बनाकर पलकों पर लगायें। इससे आंखों को आराम मिलता है।

12. सुहागा : आंख आने पर सुहागा और फिटकरी को एक साथ पानी में घोल बनाकर आंख को धोयें और बीच-बीच में बूंद-बूंद (आई ड्राप्स) की तरह प्रयोग करें। इससे बहुत जल्दी लाभ होता है।

13. बकरी का दूध : आंखों के लाल होने पर मोथा या नागरमोथा के फल को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से आराम आता है।

14. चाकसू : नेत्राभिष्यन्द या आंख आने पर चाकसू के बीजों को गूंथे हुए आटे के अंदर रखकर गर्म राख में रख दें और बाद में निकालकर बीज के छिलके हटाकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 60 मिलीग्राम की मात्रा में आंखों में लगाने से पूययुक्त नेत्राभिष्यन्द या आंख आना ठीक हो जाता है। \n

15. फरहद :

आंख आने में फरहद की छाल को बारीक पीसकर पाउडर के रूप में पलकों पर लगाने से पूरा आराम मिलता है।
फरहद की खाल के अंदर के भाग पर घी लगाकर घी के दिये को जलाकर जमी राख को आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं। स्वस्थ आंखों में लगाने से आंखों में किसी भी प्रकार के रोग होने की संभावना ही नहीं रहती है।

16. वेदमुश्क के फूल : वेदमुश्क के फूलों के रस में कपड़ा भिगोकर आंखों पर रखने से नेत्राभिष्यन्द या आंख आना में लाभ होता है।

17. हरिद्रा : नेत्राभिष्यन्द (आंख आने) में घीकुआंर का रस और हरिद्रा अथवा एलुवा (मुसब्बर) और हरिद्रा मिलाकर पलकों पर लेप करने से लाभ होता है।

18. रक्त पुनर्नवा की जड़ : गदहपुरैना की जड़ (रक्त पुनर्नवा की जड़) को पीसकर शहद में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार आंखों में लगायें। इससे नेत्राभिष्यन्द (आंख आने) के रोग में आराम आता है।

19. अनन्तमूल : अनन्तमूल का दूध आंखों में डालने से नेत्राभिष्यन्द या आंख आना में लाभ होता है।

20. गुलाबजल :

आंखों को साफ करके गुलाब जल की बूंदें आंखों में डालने से आंखों के रोग समाप्त हो जाते हैं।
गुलाबजल आंखों में डालने से आंखों की जलन और किरकिरापन (आंखों में कुछ चुभना) भी दूर हो जाता है।

21. चमेली : नेत्राभिष्यन्द (आंख आने) पर कदम के रस में चमेली के फूलों को पीसकर पलकों पर लेप करने से रोगी को लाभ होता है।

22. अगस्त के फूल : अगस्त के फूल और पत्तों का रस नाक में डालने से आंखों में आराम आता है।

23. बेर : बेर की गुठली को पीसकर गर्म पानी से अच्छी तरह से छानकर आंखों में डालने से नेत्राभिष्यन्द और आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।

24. निर्मली के बीज : निर्मली के बीजों को पानी के साथ पीसकर आंखों में लगाने से आंखों का लाल होना और नेत्राभिष्यन्द ठीक हो जाता है।

25. कुंगकु : 20 से 40 मिलीलीटर कुंगकु की छाल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के कई रोगों में फायदा होता है।

26. बबूल : बबूल की पत्तियों को पीसकर टिकिया बना लें और रात के समय आंखों पर बांध लें सुबह उठने पर खोल लें। इससे आंखों का लाल होना और आंखों का दर्द आदि रोग दूर हो जायेंगे।

27. मक्खन : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में स्वर्ण बसन्त मालती सुबह-शाम मक्खन-मिश्री के साथ सेवन करने से आंख आना, आंखों में कीचड़ जमना और आंखों की रोशनी कमजोर होना आदि रोग दूर होते हैं।

28. बोरिक एसिड पाउडर : बोरिक एसिड पाउडर को पानी में मिलाकर आंखों को कई बार साफ करने से आंखों के अंदर की पूय (मवाद) और धूल मिट्टी साफ हो जाती है।  

29. मिश्री : लगभग 6 से 10 ग्राम महात्रिफला और मिश्री को घी में मिलाकर सुबह-शाम रोगी को देने से गर्मी के कारण आंखों में जलन, आंखें ज्यादा लाल हो जाना, आंखों की पलकों का सूज जाना और रोशनी की ओर देखने से आंखों में जलन होना आदि रोग दूर होते हैं। इसके साथ ही त्रिफला के पानी से आंखों को धोने से भी आराम आता है।

30. फिटकरी : फिटकरी का टुकड़ा पानी में डुबोकर पानी की बूंदें आंखों में रोजाना 3 से 4 बार लगाने से लाभ मिलता है।

31. त्रिफला : 4 चम्मच त्रिफला का चूर्ण 1 गिलास पानी में भिगों दें। फिर उस पानी को अच्छी तरह से छानकर आंखों पर छींटे मारकर आंखों को दिन में 4 बार धोने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।

32. बरगद : बरगद का दूध पैरों के नाखूनों में लगाने से आंख आना ठीक होता है।

33. दूध : मां के दूध की 1-2 बूंदे बच्चे की आंखों में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।

34. आंवला : आंवले का रस निकालकर उसे किसी कपडे़ में छानकर  रख लें। इस रस को बूंद-बूंद करके आंखों में डालने से आंखों का लाल होना और आंखों की जलन दूर होती है।

35. गोक्षुर : गोक्षुर के हरे ताजे पत्तों को पीसकर पलकों पर बांधने से आंखों की सूजन और आंखों की लाली दूर होती है।

36. दूब : हरी दूब (घास) के रस में रूई के टुकड़े को भिगोकर पलकों पर रखने से आंख आना के रोग से छुटकारा मिलता है।

37. हरड़ : हरड़ को रात के समय पानी में डालकर रखें। सुबह उस पानी को कपड़े से छानकर आंखों को धोयें। इससे आंखों का लाल होना दूर होता है।

38. नीम :

नीम के पत्ते और मकोय का रस निकालकर पलकों पर लगाने से आंखों का लाल होना दूर होता है।
नीम के पानी से आंखें धोकर आंखों में गुलाबजल या फिटकरी का पानी डालें।

39. अडूसा : अड़ूसा के ताजे फूलों को हल्का सा गर्म करके पलकों पर बांधने से आंखों के दर्द होने की बीमारी दूर होती है।

40. तगर  : तगर के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहरी हिस्सों में लेप करने से आंखों का दर्द बन्द हो जाता है।

41. बथुआ : आंखों की सूजन होने पर रोज बथुए की सब्जी खाने से लाभ होता है।

Monday 8 February 2016

प्रोटीन के स्रोत (Benefits and source of protin)

प्रोटीन

परिचय-
भोजन का मुख्य आवश्यक तत्व है- प्रोटीन। यही तत्व शरीर की कोशिकाओं अर्थात् मांस आदि का निर्माण करता है। इसकी प्रचुर मात्रा भोजन में रहने से शरीर की कोशिकाओं का निर्माण और मरम्मत आदि का कार्य सुचारू रूप से जीवन भर चलता रहता हैं। प्रोटीन में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा गंधक के अंश मिले रहते हैं। इसमें फास्फोरस भी विद्यमान हो सकता है। प्रोटीन में नाइट्रोजन की अधिकता रहती है। प्रोटीन दो प्रकार का होता है (1) पशुओं से प्राप्त होने वाला (2) फल, सब्जियों तथा अनाज आदि से मिलने वाला। हालांकि शरीर में यदि प्रोटीन अधिक हो जाए तो मल द्वारा बाहर निकल आता है। फिर भी दैनिक आवश्यकता के लिए नियमित प्रोटीन की आवश्यकता शरीर को रहती है लेकिन इस बात की ओर भी ध्यान देना अति आवश्यक है कि आवश्यकता से अधिक प्रोटीन लाभ की अपेक्षा शरीर को हानि भी पहुंचा सकता है परन्तु जब भोजन के बाद भी शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाए तो बाहर से कृत्रिम तरीके से निर्मित प्रोटीन से उस कमी की पूर्ति करना बहुत जरूरी होता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति किलोग्राम वजन के अनुपात से मनुष्य को एक ग्राम प्रोटीन की आवश्कता होती हैं अर्थात यदि वजन 50 किलो है तो नित्य 50 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन में मौजूद पाया जाता है। यदि दोनों को भोजन में एक साथ लिया जाए तो शरीर में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा शामिल की जा सकती है। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि शरीर में जीवनीय तत्वों की कमी न हो तो शरीर रोगों से बचा रहता है। संक्रमणजन्य रोगों से बचाव के लिए प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है।

प्रोटीन के स्रोत-
अण्डे की सफेदी, दूध, दही, पनीर, मछली, मांस, यकृत, वृक्कों और दिमाग में सर्वोत्तम किस्म की प्रोटीन विद्यमान है। दालों, हरी सब्जियों और अनाजों में दूसरे किस्म का प्रोटीन पाया जाता है।
अण्डे में प्रोटीन
क्र.स.
अंड
प्रोटीन
1.
पूर्ण अंडा
13.0 प्रतिशत
2.
अंडे की सफेदी
10.5 प्रतिशत
3.
अंडे की जर्दी
17.0 प्रतिशत
दूध में प्रोटीन
क्र.स.
प्राणी का नाम
प्रोटीन
1.
गाय का दूध
3.4 प्रतिशत
2.
बकरी का दूध
4.4 प्रतिशत
3.
भेड़ का दूध
6.7 प्रतिशत
4.
भैंस का दूध
5.9 प्रतिशत
5.
स्त्री का दूध
1.7 प्रतिशत
प्रोटीन की आवश्यकता
  • बच्चों को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उनका शरीर विकास कर रहा होता है।
  • बुढ़ापे में भी शरीर को प्रोटीन की अत्यधिक आवश्यकता होती है क्योंकि यह एक ऐसी अवस्था होती है जब प्रोटीन जल्दी हजम हो जाता है। इस आयु में यदि प्रोटीन की मात्रा घट गई तो जीवन शक्ति का अभाव हो जाता है। इसलिए इस अवस्था में खाद्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
  • गर्भावस्था में मां के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे को भी प्रोटीन की अत्यधिक आवश्यकता होती है। प्रोटीन गर्भ में पल रहे बच्चे की शरीर के विकास में जरूरी होती है। फिर मां के स्वास्थ्य के लिए तो यह जरूरी है ही। प्रोटीन की कमी इस अवस्था में मां और गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। अत: यह अति आवश्यक है कि गर्भावस्था में माता को प्रोटीनयुक्त खाद्य अधिक से अधिक प्रयोग कराया जाए।
  • जिस प्रकार गर्भावस्था में माता को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है। ठीक उसी प्रकार दूध पिलाने वाली माता को भी प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में प्रोटीन की कमी मां और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। दूध पिलाने वाली माताओं और गर्भवती स्त्री को दोनों प्रकार के प्रोटीन देने चाहिए।
  • रोगों के बाद रोगी के शरीर की शक्ति क्षीण हो चुकी होती है। इस अवस्था में रोगी दीन-हीन व असहाय हो जाता है। रोगी के शरीर के तंतु, कोशिकाएं आदि काफी टूट-फूट चुके होते हैं अत: उन्हें नई जीवन शक्ति और मजबूती प्रदान करने की खातिर अधिकाधिक दोनों प्रकार के प्रोटीन देने चाहिए ताकि शरीर की खोई हुई शक्ति को पुन: प्राप्त कर सके। जिन लोगों को रोगों के बाद या ऑप्रेशन के बाद उचित खाद्य प्रोटीन नहीं मिलते उनके पुन: रोगी हो जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। रोगी का शरीर पहले ही रोग से टूट चुका होता है। उसके बाद खान-पान सही नहीं होने से शरीर की शक्ति और अधिक तेजी से नष्ट होती है और रोग दुबारा आ घेरता है।

Sunday 7 February 2016

गर्मियों में स्वास्थ्य रक्षा - summer health tips To protect from diseases

गर्मियों में स्वास्थ्य रक्षा

भाग-दौड़ की जिन्दगी में गर्मी के डर से घर में दुबक कर बैठ भी तो नही सकते।गर्मी को देखते हुए जरूरी है कि पहले से ही इस मौसम के लिए अपनी प्लानिंग कर ली जाए। इससे मौसम के नकारात्मक असर से बचा जा सकेगा।ऐसे शुष्क और उष्ण मौसम में खान-पान और पहनावे पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती हैताकि लू और गर्मी की वजह से शरीर में होने वाली पानी की कमी से बचा जा सके।प्राय: शरीर में जल की कमी के कारण अनेक दिक्कतें पैदा होने लगती है। इसलिए इस मौसम में स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है।गर्मी में लापरवाही के कारण शरीर  में निर्जलीकरण (dehydration),लू लगनाचक्कर आना घबराहट होना ,नकसीर आनाउलटी-दस्त, sun-burn,घमोरिया जैसी कई diseases हो जाती हैं

गर्मी से होने वाली बीमारियों के कुछ मुख्य कारण:-
१.गर्मी के दिनों में खुले शरीर धुप में चलना और भाग-दौड करना,
२.तेज गर्मी में घर से खाली पेट यानि भूखा-प्यासा बाहर जाना,
३.धुप से आकर तुरंत ठण्डा पानी या अन्य ठन्डे पेय का सेवन करना,
४.तेज धुप से आकर सीधे AC कूलर में बैठना या यहाँ से सीधे उठकर  धुप में जाना,
५.तेज गर्मी में भी सिंथेटिक वस्त्रों का पहनना,
६.तैलीय,गरिष्ठ,तेज मसाले,बहुत गर्म खाना खाने,अधिक चाय,शराब का सेवन करना,
बचाव के तरीके:-जैसा की आप जानते हैं उपचार से बचाव बेहतर होता है,यहाँ पर हम गर्मी से कैसे बचा जाये इस पर चर्चा करेंगे.

  1. गर्मी में सूती और हलके रंग के कपडे पहनने चाहिये,गर्मी के मौसम में चमकदारभड़कीले और चटक रंग वाले कपड़े गर्मी को अवशोषित करते हैं। जिससे शरीर की त्वचा जलने लगती है। इसके विपरीत हल्के रंग वालेसादे रंग उत्तम माने जाते हैं। खास कर पूरी गर्मी में सूती कपड़े पहनना चाहिए। यदि सूती कपड़े उपलब्ध न हों,तो ऐसे कपड़े चुनें,जिमें सूती का अंश अधिक हो।  
  2. चेहरा और सर रुमाल या साफी से ढक कर निकलना चाहिये 
  3. गर्मी में ज्यादा भारी,बासी भोजन नहीं करे,क्योंकि गर्मी में शरीर की जठराग्नि मंद रहती है ,इसलिए वह भारी खाना पूरी तरह पचा नहीं पाती और जरुरत से ज्यादा खाने या भारी खाना खाने से उलटी-दस्त की शिकायत हो सकती है,गरम मसालों का उपयोग: लौंगजायफलदालचीनी का प्रयोग कम करें। 
  4. गर्मी में जब भी घरसे निकले ,कुछ खा कर और पानी पी कर ही निकले ,खाली पेट नहीं
  5. बाजारू ठंडी चीजे नहीं बल्कि घर की बनी ठंडी चीजो का सेवन करना चाहिये,यानि की  आम का पना,खस,चन्दन,गुलाब,फालसा,संतराका सरबत ,ठंडाई सत्तूदही की लस्सी,मट्ठा,गुलकंद का सेवन करना चाहिये
  6. हरी ताजी सब्जियों का यथा  लोकी ,ककड़ी ,खीरा,तोरई,पालक,पुदीना ,नीबू ,तरबूज,नेनुआ  आदि का सेवन अधिक करना चाहिये
  7. ठन्डे  पानी का सेवन ,से ५ लीटर रोजाना करना चाहिए 
  8. सफेद   प्याज का सेवन तथा बाहर निकलते समय जेब में प्याज रखना चाहिये
  9. भोजन के समय पूदीनाप्याज और कच्चे आम की चटनी अवश्य खायें 
  10. सुपाच्य खाद्य-पदार्थों का सेवन करें,खिचड़ी में सब्जियां डालकर प्रति दिन लिया जा सकता है
  11. चाय और काफी का उपयोग कम करें,शराब का सेवन यथासम्भव न करें 
  12. गर्मी के मौसम में अधिक-से-अधिक कार्य प्रात: और शाम को निपटाना चाहिए।
  13. गर्मियों में सिरदर्द और अधकपारी बढ़ जाती है। जिन्हें सिरदर्द रहता हैउन्हें धूप में नहीं निकलना चाहिए। यदि मजबूरन बाहर जाना ही होतो सिर पर टोपी,पगड़ीअंगोछा या कोई कपड़ा रखकर निकलना चाहिए। 
  14. गर्मियों में स्किन प्रॉब्लम से छुटकारा पाने के लिए हर्बल फेस पैक अपनाएं। गर्मियों में धूप की वजह से चेहरे पर रूखापन आ जाता है, अधिक समय तक रूखापन बने रहने से त्वचा संबंधी रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और इससे एलर्जी की आशंका सबसे ज्यादा रहती है।
  15. गर्मी में बॉडी के साथ ही आंखों पर भी ज्यादा नेगेटिव असर पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि इनका भी खास ख्याल रखा जाए।

Useful healthy tips in Hindi - हेल्थ टिप्स

काम के हैं ये हेल्थ टिप्स


  1. अगर आपके बाल ड्राई हैं, तो हफ्ते में एक बार बालों पर गर्म तेल की मसाज व भाप दें। गर्म तेल बालों को ड्राई होने से रोकेगा और उन्हें मुलायम बनाएगा। 
  2. मेहंदी को कलर आने तक ही बालों पर लगाकर रखें और फिर तुरंत धो दें। मेहंदी जितनी देर बालों में लगी रहती है, उतनी देर बालों की नमी सोखती है। 
  3. ड्राई बालों पर ब्राशिंग स्कैल्प पर दबाकर करने से तैलीय ग्रंथियां सक्रिय होती है, जिससे बालों की ड्राईनेस कम होती है। 
  4. गाजर के जूस में शहद व नमक डालकर पीने से आंखों की कम हुई रोशनी लौट आती है। 
  5. किडनी स्टोन से दूर रहने के लिए नियमित तौर पर तरबूज ड्रिंक का सेवन करें। 
  6. चुकंदर में आयर्न की मात्रा अधिक होती है। इसके नियमित सेवन से चेहरे पर ग्लो आता है। 
  7. दिल के रोगियों के लिए करेला ड्रिंक बेहद फायदेमंद है। यह ब्लड को स्वच्छ बनाए रखता है।

healthy Hindi tips (उपवास और ताली बजाने का महत्व)

उपवास और ताली बजाने का महत्व

उपवास- उपवास का महत्व सभी धर्मों में माना जाता है। जिस तरह उपवास की धार्मिक तौर पर मान्यता है उसी तरह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी यह बहुत खास माना जाता है। उदाहरण- नवरात्रों के दिनों में जब हम पूरे नौ दिनों तक उपवास करते हैं तो उस समय सिर्फ फलाहार का सेवन किया जाता है। इससे क्या होता है कि नौ दिनों तक सिर्फ फलाहार का सेवन करने के कारण शरीर की जो वेस्टेज थी वो बाहर निकल गई तथा बाहर की कोई वेस्टेज शरीर में नहीं बन पाई। इससे क्या होगा कि न तो शरीर में वेस्टेज जमा होगा और न ही किसी तरहहै।

 रोग उत्पन्न होगा। सामान्यतः कोई भी व्यक्ति शरीर में वेस्टेज जमा होने से रोगग्रस्त हो जाता है।
शरीर में जब भी किसी तरह की गड़बड़ी पैदा होती है तो शरीर हमे उसका इंडीकेशन दे देता है और इसमें सबसे पहला इंडीकेशन आता है कि हमारी भूख कम हो गई है। ऐसे में यदि हमे खाने के लिए कहा जाता है तो खाना खाने की बिल्कुल भी इच्छा जागृत नहीं होती। प्रकृति कहती है कि अगर आपकी पचास प्रतिशत भूख कम हो गई हो तो आप एक समय का खाना छोड़ दें। इससे आप जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। लेकिन हम क्या करते हैं कि जिस दिन हमे इस तरह का इंडीकेशन मिलता है, हम उस दिन चटपटी चीजें मंगाकर या बनवाकर खा लेते हैं।
यदि हम यहां पर चूक जाते हैं- जिसे मेडिकल भाषा में बीमारी और नेचरपैथी में शरीर की क्रियाएं बोलते हैं, उस पर ध्यान नहीं देते हैं तो वह बड़ी बीमारी के रूप में प्रकट हो जाता है। यदि पेट में विकार हो गया हो तो विकार होने के बाद भोजन डाईजेस्ट नहीं हो पाएगा। ऐसे में शरीर के विकार को निकालने के दो रास्ते हैं- पहला लैट्रिन के रास्ते और दूसरा मुंह के रास्ते। यदि लैट्रिन के रास्ते विकार को बाहर निकालते हैं तो उसे लगभग 33 फुट लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि इस विकार को मुंह के रास्ते निकालने के लिए लगभग एक फुट की दूरी तय करनी पड़ती है अर्थात उल्टी करनी पडती है।
यदि अपने आप उल्टी आती है तो आने दें और अगर नहीं आती है तो पानी पीकर उल्टी करें। उल्टी जितनी मर्जी हो उतनी करें तो इसका कोई नुकसान नहीं है बल्कि इससे शरीर की गंदगी बाहर निकल जाती है। इसी तरह यदि लूजमोशन हो जाए तो उसे दवाओं से दबाना नहीं चाहिए। भरपेट पानी पीएं और जैसे ही लैट्रिन आए तुरंत ही लैट्रिन जाएं। इस तरह से पूरी आंतें साफ हो जाएगी। लेकिन अक्सर हम दवाईयों के प्रयोग से इसे दबा देते हैं जिससे यह रुक जाता है और शरीर में जमा होकर पुराना रोग बन जाता है। डायबिटीज, स्टोन, ट्यूमर आदि रोग शरीर से निकलने वाले विकार को दबाने का ही नतीजा है। नहीं तो ट्यूमर एक दिन में नहीं बन जाता, वर्षों लगते हैं उसे बनने में।
विश्राम- विश्राम का जीवन में बहुत ही ज्यादा महत्व माना जाता है क्यों ? ऐसा इसलिए होता है कि जब हम पूरे दिन काम करते हैं तो हमारे शरीर के बहुत से सेल्स नष्ट हो जाते हैं और कुछ बाईप्रोडक्ट बनने लगते हैं जैसे- कैमिकल आदि। अब होगा क्या कि हम जितना ज्यादा काम करेंगे हमारे शरीर में उतना ही वेस्टप्रोडेक्ट बनता जाएगा लेकिन पूरी तरह व्यस्त रहने के कारण शरीर को उसे बाहर निकालने का समय ही नहीं मिल पाएगा। इसी को देखते हुए प्रकृति ने विश्राम करने का नियम बनाया है ताकि जब हम विश्राम करें तो हमारी सारी क्रियाएं बंद हो जाए और यह वेस्टप्रोडेक्ट बाहर निकल जाए।
कई बार ऐसा भी होता है कि हम मानसिक या शारीरिक रूप से थक जाते हैं, कई बार काम के बोझ के कारण भी थकावट आ जाती है ऐसी स्थिति में विश्राम कर लेना ही उचित है। विश्राम के लिए श्वासन में लेटना सबसे उपयुक्त माना जाता है। यदि अधिक मानसिक कार्य के कारण तनाव है तो ऐसे में भी श्वासन में लेट सकते हैं। लेकिन श्वासन में आप केवल घर पर ही लेट सकते हैं, ऑफिस में या कहीं बाहर नहीं लेट सकते। ऐसे में श्वासन के स्थान पर अंजनिमुद्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे भी मानसिक तनाव दूर होता है।
इसके लिए अपने हाथों को कटोरी की मुद्रा में बना लें, फिर आंखों को बंद करके एक हाथ से एक आंख को ढकें इससे माथे पर आपकी अंगुलियां आ जाएंगी। अब इसी तरह दूसरे हाथ को दूसरी आंखों पर टिकाएं जिससे माथे के ऊपर आपकी अंगुलियां आ जाएगी। दो से दस मिनट तक इस स्थिति में रहने के बाद आपकी सारी मानसिक परेशानी दूर हो जाएगी। इसके बाद अपने काम को शुरू कर सकते हैं। अब जो नींद है वह रात के समय बहुत जरूरी है। जितनी गहरी नींद आएगी उतना ज्यादा हमारा शरीर डिटॉक्सीफाई होगा और जितना ज्यादा शरीर डिटॉक्सीफाई होगा उतनी ज्यादा फ्रेशनेश रहेगी।
यदि रात को पेशाब करने या पानी पीने के लिए उठ गए तो इसका अर्थ है कि आपको गहरी नींद नहीं आई है। भोजन में जितना ज्यादा वेस्टप्रोडेक्ट होगा उतनी गहरी नींद आएगी लेकिन यह आलस्य वाली नींद होगी। स्टूडेंट, डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट आदि जिन्हें अधिक मानसिक कार्य करना पड़ता है, अधिक देर तक जागना पड़ता है। ऐसी व्यक्तियों को नैचुरल डाईट पर रहना चाहिए ताकि शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट कम बने।
अगर वेस्टप्रोडेक्ट शरीर में कम बनेगा तो नींद भी आवश्यकता से कम आएगी। हम क्या करते हैं कि अक्सर नींद को खत्म करने के लिए चाय-कॉफी का इस्तेमाल करते रहते हैं। लेकिन इसके स्थान पर फलाहार ले लिया जाए तो वेस्टप्रोडेक्ट बिल्कुल ही कम हो जाएंगे और शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होगा। यदि कोई फंक्सन है, शादी-पार्टी और देर रात तक जागना हो तो सुबह से ही फलाहार, जूस आदि लेना शुरु कर दें। इससे न आलस्य आएगा और न ही थकावटहोगी।
मौन की शक्ति- मौन की शक्ति भी अपने आप में खास मानी जाती है। बोलने में शरीर की बहुत एनर्जी लगती है इसलिए अगर कम शब्दों में अपनी बात कही जाए तो ज्यादा अच्छा रहता है। यदि आपको मौन की शक्ति देखनी है तो आप एक दिन मौनव्रत धारण करें और दूसरे दिन देखें कि आप अपने आपमें कितनी फ्रेशनेश महसूस कर रहे हैं। हम बेमतलब में अधिक बोलकर अपनी एनर्जी वेस्ट करते रहते हैं। इसलिए अपनी एनर्जी को बचाने के लिए कम बोलना चाहिए।
ताली बजाना- सिर्फ ताली बजाकर ही किसी भी रोग से छुटाकारा पाया जा सकता है। हमारे देश के मंदिरों में या अन्य स्थानों पर आरती या भजन गाते समय ताली बजाने की जो प्रथा है वह प्राचीन काल के वैज्ञानिकों ने शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए बनाई है। ताली बजाने से न सिर्फ रोगों से रक्षा होती है बल्कि कई रोगों का इलाज भी हो जाता है जैसे- कि ताला खोलने के लिए चाबी की आवश्यकता होती है वैसे ही कई रोगों को दूर करने में यह ताली, चाबी का ही काम नहीं करती है बल्कि कई रोगों का ताला खोलने वाली होने से इसे मास्टर की भी कहा जा सकता है। हाथों से नियमित रूप से ताली बजाकर कई रोग दूर किए जा सकते हैं। स्वास्थ्य की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है और प्रतिदिन यदि नियमित रूप से 2 मिनट भी तालियां बजाएं तो फिर किसी हठयोग या आसनों की जरूरत नहीं होती है।
लगातार ताली बजाने से रक्त के श्वेत कणों को शक्ति मिलती है जिसके परिणामस्वरूप शरीर में रोग-प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि होती है इससे शरीर रोगों के आक्रमण से अपना बचाव कर रोगी होने से बचने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। ध्यान के अभ्यास में भी ताली की भूमिका महत्वपूर्ण है। ध्यान लगाते समय हमारी आंखें तो बंद होती हैं लेकिन कान खुले होते हैं।कान बंद करने का कोई उपाय नहीं है अतः जरा-सी आवाज होते ही हमारा ध्यान भंग हो जाता है। लेकिन आंखें बंद कर हम तेजी से ताली बजाते हैं तो हमारे कान ताली की आवाज सुनने में व्यस्त हो जाते हैं और दूसरी आवाजों की तरफ ध्यान नहीं देते हैं। ऐसे में बाहरी आवाजों से संपर्क टूट जाने के कारण हमारा ध्यान भंग नहीं होता। धीरे-धीरे तालियां बजाने की अवधि बढ़ाकर हम ध्यान की अवधि को भी बढ़ा सकते हैं।
हथेलियों में शरीर के सभी आंतरिक उत्सर्जन संस्थानों के बिंदु मौजूद होते हैं और ताली बजाने से जब इन बिंदुओं पर बार-बार दबाव पड़ता है तो सभी आंतरिक संस्थान ऊर्जा पाकर अपना काम ठीक प्रकार से करने लगते हैं जिससे शरीर स्वस्थ एवं निरोग बना रहता है। ताली बजाने से शरीर का मोटापाकम होता है, विकार नष्ट होते हैं और वात, पित्त और कफ का संतुलन ठीक रहता है।
जिस प्रकार हम किसी कपड़े को साफ करने अर्थात धूल झाड़ने के लिए झटकारते हैं उसी प्रकार ताली बजाने से जो झटके लगते हैं उससे हमारे शरीर की भी सफाई होती है। लेकिन हमें एक बात का ध्यान रखना होगा कि ताली बजाने के इस प्राकृतिक साधन का उपयोग करने का लाभ तभी मिल सकता है जब हमारी दिनचर्या में अप्राकृतिक साधनों का उपयोग कतई न हो। जब हम प्रकृति का नाश करते हैं तो जाहिर है कि प्रकृति भी हमसे बदला लेगी और हमारी प्रकृति को विकृति में बदल देगी, विकृति ही व्याधि अर्थात रोग है और विकारग्रस्त होना ही रोगी होना है।
ताली बजाना मन की प्रसन्नता का भी प्रतीक है। इस कारण खुशी में ताली बजाई जाती है। आप सभी को भी प्रतिदिन प्रसन्न होकर ताली बजाना चाहिए।

Top 15 healthy daily life tips (आसान हेल्थ टिप्स )

15 आसान हेल्थ टिप्स

इन दिनों लोगों ने अपनी लाइफस्टाइल ऐसी बना ली है कि दिनों दिन वे नई-नई परेशानियों और बीमारियों से घिरते जा रहे हैं। चाहे खान-पान हो या आरामदायक जीवनशैली। और तो और शहरी वातावरण भी उन्हें इस तरह की दिनचर्या बनाने में काफी मदद की है। सभी ऐशोआराम की चीजें उन्हें घर बैठे हासिल हो जाती है। उन्हें उठकर कहीं जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। नतीजा.... 

जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां। आइए नये साल पर अपनी आरामदायक जीवनशैली को बदलने के लिए कुछ संकल्प लें। यहां 15 आसान हेल्थ टिप्स दिये जा रहें हैं जिन्हें अपनाकर आप अपनी फिगर को मेंटन तो कर ही सकती हैं। साथ ही इन्हें अपनाकर आप दिन भर तरोताजा भी महसूस करेंगीं।
  1. प्रतिदिन वॉक करें। अगर हो सके तो फुटबॉल खेलें यह एक प्रकार का एक्सरसाइज ही है।
  2. ऑफिस में या कहीं भी जाएं तो लिफ्ट के बदले सीढिय़ों का इस्तेमाल करें।
  3. अपने कुत्ते को वॉक पर खुद लेकर जाएं। बच्चों के साथ खेलें, लॉन में नंगे पांव चलें, घर के आसपास पेड़ पौधे लगाऐं, यानि कि वो सब करें जिनसे आप खुद को एक्टिव रख सकें। 
  4. ऐसी जगह एक्सरसाइज न करें जहां भीड़भाड़ ज्यादा हो।
  5. तले-भुने भोजन, और अन्य फैटी चीजों से परहेज करें यह बहुत से बीमारियों की जड़ होती है। 
  6. डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन करें। जैसे कि चीज, कॉटेज चीज, दूध और क्रीम का लो फैट प्रोडक्ट आदि। 
  7. यदि खाना ही है तो, मक्खन ,फैट फ्री चीज और मोयोनीज का लो फैट उत्पाद प्रयोग में लाऐं।
  8. तनाव हमारी जिंदगी में काफी निगेटिव असर डालता है। विशेषज्ञों के अनुसार तनाव कम करने के लिए सकारात्मक विचार बहुत मददगार साबित हो सकते हैं। 
  9. तनाव कम करने के लिए रोज कम से कम आधा घंटा ऐसे काम करें, जिसे करने में आपको मन लगता हो। 
  10. तनाव कम करने के लिए आप योग का भी सहारा ले सकते हैं।
  11. गुस्सा तनाव बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है इसलिए गुस्सा आने पर स्वंय को शांत करने के लिए एक से दस तक गिनती गिनें। 
  12. उन लोगों से दूर रहने की कोशिश करें जो आपके तनाव को बढ़ाते हों।
  13. धूम्रपान से परहेज करें। धूम्रपान से शरीर और उम्र पर असर तो पड़ता ही है, साथ ही फेफड़ों का कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो सकती है।
  14. धूम्रपान में कमी लाने के लिए उसकी तलब लगने पर सौंफ आदि का सेवन करें।
  15. मार्केट में भी आजकल बहुत से प्रोडक्ट मिलने लगे हैं जो धूम्रपान की तलब को कम करते हैं।

Friday 29 January 2016

Ankurit anaaj ke fayade ( health benefits of sprouts )

अंकुरित अनाज
परिचय-

किसी भी अनाज, गिरी तथा बीज आदि को अंकुरित करने का एक सीधा-सा तरीका है- इसके लिए अनाज को 12 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद छानकर एक कपड़े में बांध लें। लेकिन इसके लिए तीन नियमों का पालन करना जरूरी हैं- पहला भिगोने के बाद पानी हटाना, दूसरा पानी हटाने के बाद हवा लगाना और तीसरा अंधेरा। मूंगफली में 12 घंटे में अंकुर फूटते हैं,चना 24 घंटे में और गेहूं आदि 36 घंटे में अंकुरित होते हैं। वैसे तो अंकुरित अनाजों को कच्चा ही खाना चाहिए लेकिन यदि उन्हे स्वादिष्ट बनाना है तो उनमें थोड़ी मूंगभिगोकर मिला दें। फिर उसमें हरा धनिया, टमाटर,अदरक और प्याज मिला लें!



यदि उसमें चना मिलाना चाहे तो मिला सकते हैं लेकिन बिल्कुल थोड़ी मात्रा में। अब प्रश्न उठता है कि इन्हे अलग-अलग भिगोएं या एक साथ। इसे अलग-अलग भिगोना अच्छा है जैसे- आपने चना भिगोया और उसके साथ मूंग भी भिगो दी लेकिन दोनों के अंकुरित होने का समय अलग-अलग है। ऐसे में मूंग पहले ही अंकुरित हो जाएगा, लेकिन चना नहीं हो पाएगा। यदि चने के साथ मूंग को 24 घंटे छोड़ते हैं तो मूंग का अंकुर अधिक लम्बा हो जाएगा और उसका न्यूट्रेशन कम हो जाएगा। जिनका अंकुरण समय एक समान हो उन अनाजों को एक साथ भिगो सकते हैं।

अंकुरित आहार लेने का फायदा-

इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें वेस्टेज नहीं होता जिसके कारण उसे निकालने के लिए शरीर को अनावश्यक एनर्जी नहीं लगानी पड़ती। शरीर में वेस्टेज न होने से एनर्जी शरीर की सफाई में लग जाती है जिससे सारे शरीर की सफाई हो जाती है। इससे रोग पैदा होने का जो भी कारण है वह शरीर से बाहर निकल जाता है।

उदाहरण- किसी को हार्ट ब्लॉकेज है तो उसको पूर्ण रूप से नैचुरल डाईट पर डाल दें। इससे उसके हार्ट की सारी ब्लॉकेज खुल जाएगी। किडनी प्रॉब्लम में क्या होता है कि जब 50 या 60 प्रतिशत किडनी खराब हो चुकी होती है तब उसके बारे में पता लग पाता है और जब टैस्ट करवाया जाता है तो पता चलता है कि 20 या 30 प्रतिशत ही किडनी काम कर रही है।

इस प्रॉब्लम का ट्रीटमेंट प्राकृतिक चिकित्सा से करें और नैचुरल डाईट लें। इससे शरीर में बाहर से कोई वेस्टेज नहीं जाएगा जिससे किडनी का कार्य कम हो जाएगा अर्थात उस वेस्टेज को निकालने के लिए किडनी को कम काम करना पड़ेगा। नैचुरल डाईट से वेस्टेज नहीं बन पाता है, जिससे किडनी को आराम मिलता है। जिस तरह सुबह को काम करने और रात को सोने से सारी थकावट दूर हो जाती है उसी तरह जब किडनी को आराम मिलता है तो धीरे-धीरे किडनी के सारे सेल्स नए बनने लगते हैं जिससे किडनी फिर से अपना काम ठीक तरह से करने लगती है।

प्राकृतिक तरीके से नैचुरल डाईट द्वारा शरीर का वेस्ट-प्रोडेक्ट बाहर निकालने से रोग धीरे-धीरे सही हो जाता है।

हार्मोन्स बनाने वाली ग्रंथि में खराबी आई हो तो उसे नैचुरल डाईट से ठीक किया जा सकता है और इसके साथ ही योग के द्वारा पुराने सेल्सों को भी नए बनाए जा सकते हैं।

रसाहार- सब्जियों के रस (वैजिटेबल जूस) को रसाहार कहा जाता है लेकिन रस की तुलना में सब्जियों में मिनरल्स अधिक मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए जिन व्यक्तियों के शरीर में मिनरल्स की कमी हो जाती है उन्हे इसकी पूर्ति के लिए आमतौर पर सब्जियों का रस ही दिया जाता है। अब सवाल यह उठता है कि सब्जियों का जूस लेना अच्छा है या उन्हे खाना अच्छा है। इसका जवाब यही है कि इन्हे खाना अच्छा है लेकिन फिर भी रोगियों आदि को जूस दिया जाता है क्यों ? ऐसा इसलिए होता है कि मान लीजिए आपने उपवास किया है और आपको फल का जूस पीने के लिए दिया जाता है लेकिन आपका मन जूस पीने का नहीं है तो आपको उस स्थिति में जूस के स्थान पर अधिक मात्रा में फल का सेवन करना पड़ेगा।

उदाहरण- किसी व्यक्ति को एसीडिटी की प्रॉब्लम है और डॉक्टर ने उसे गाजर के जूस का सेवन करने के लिए कहा है लेकिन उसे अगर गाजर के जूस के स्थान पर गाजर खाने को दी जाए तो वह कितनी गाजर खा पाएगा। इसलिए ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को गाजर का जूस ही दिया जाएगा। इसी तरह उपवास में या शरीर की आंतरिक सफाई करने के लिए जूस पीना ज्यादा अच्छा है क्योंकि जूस शरीर की सारी गंदगी को निचोड़कर बाहर निकाल देता है। यदि कोई व्यक्ति अपना स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए उपवास रखता है तो उसे हर एक-एक घंटे के बाद नींबू पानी, नींबू-शहद-पानी, सब्जियों का रस या फलों का रस देना चाहिए। इससे उस व्यक्ति को एनर्जी मिलने के साथ ही भूख भी महसूस नहीं होगी। उसके शरीर में पानी की कमी दूर होगी और अगले दिन तक शरीर पूर्ण रूप से साफ हो जाएगा।

रसाहार के दौरान कई व्यक्तियों की शिकायत रहती है कि इसका सेवन करने के काल में मुझे गैस की प्रॉब्लम महसूस होने लग गई है ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए होता है कि हम लोग रसाहार को अक्सर एक ही सांस में या जल्दी से पी जाते हैं जो कि गलत है। रस को हमेशा चायकी तरह आराम-आराम से पीना चाहिए इससे यह आसानी से डाइजेस्ट हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जूस में मौजूद स्टार्च यहीं पर ग्लूकोज में बदल जाता है। उदाहरण- संतरे का रस मुंह में रखते ही खट्टा लगने लगता है लेकिन थोड़ी देर तक उसे मुंह में रखने से वह रस मीठा लगने लगता है क्योंकि तब तक उसका स्टार्च ग्लूकोज में बदल चुका होता है।

रस को हमेशा ताजा-ताजा ही पीना चाहिए क्योंकि ज्यादा देर तक रखने से यह खराब हो जाता है।

कुछ लोग रस का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें चीनी यानमक मिला लेते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। इसलिए रस को हमेशा बिना कुछ मिलाए ही सेवन करना चाहिए।

भोजन बनाने में सावधानी- आमतौर पर हम जबभोजन तैयार करते हैं तो उस दौरान बहुत सी गलतियां करते हैं। जैसे आटा गूंथने से पहले उसे छान लिया जाता है जिससे उसमें मौजूद चोकर भी बाहर निकल जाता है जो कि सही नहीं है- आटे से कंकर, पत्थर या अन्य चीजें निकाल दें लेकिन चोकर न निकालें क्योंकि चोकर में फाइबर और विटामिन दोनों मौजूद होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। चावल भी बिना पॉलिस वाला खाएं क्योंकि पॉलिस किए हुए चावल से सारे विटामिन निकल जाते हैं। इसके बाद सबसे जरूरी चीज है- तेल और चिकनाई।

चिकनाई बहुत जल्द बॉडी में जमा होने लगती है और बढ़ती ही जाती है। W.H.O वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन में भी कहा गया है कि पके हुए तेल या चिकनाई को एक बार से ज्यादा नहीं प्रयोग करना चाहिए। लेकिन हम क्या करते हैं कि जब कोई चीज तेल में पकाते हैं और पकाने के बाद जो तेल बच जाता है उस बचे तेल को रख लेते हैं। दूसरी बार कोई चीज पकानी होती है तो उसे इसी बचे तेल में पकाते हैं। इससे क्या होता है कि तेल में पॉयजन बनता रहता है जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही नुकसानदायक होता है। आपने देखा होगा कि बाजार के पकौड़े खाने के बाद अक्सर एसीडिटी की प्रॉब्लम हो जाती है, पेट खराब हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह लोग एक ही तेल को बार-बार प्रयोग में लाते रहते हैं।

रेशेदार भोजन, फाईबर फूड- नैचुरल भोजन में भरपूर मात्रा में फाईबर होता है और हम जितना फाईबर फूड लेंगे, हमारी आंतें उतनी ही साफ रहेंगी, पाचन शक्ति ठीक रहेगी, शौच खुलकर आएगी और शरीर स्वस्थ रहेगा।

फाईबर फूड में क्या-क्या आता है? इसमें सबसे पहले आता है दूध। आज के समय में जब तक बच्चा मां का दूध पीता है तब तक उसके लिए सही है क्योंकि आज दूध में मिलावट बहुत है। अपने सामने दूध निकलवाने के बाद भी शुद्ध दूध की गारंटी नहीं होती क्योंकि गाय या भैंस को ऑक्सीकरण के लिए इंजेक्शन लगाया जाता है और दूसरा उसके चारे में कैमिकल डाला जाता है ताकि वह दूध ज्यादा दे। अब मिलावटी दूध से बचने के लिए क्या करें? इसके लिए आप अपना अल्टर्नेटिव वैजिटेरियन दूध बना सकते हैं।

सफेद तिल, सोयाबीन, मूंगफली, नारियल, बादाम औरकाजू आदि किसी का भी आप दूध बना सकते है। इसके लिए दूध बनाने का सिम्पल सा तरीका है- कच्चा नारियल लेकर मिक्सी में पीस लें, फिर उसका पेस्ट बनाकर उसमें गर्म या ठंडा पानी डालकर छान लें, बस तैयार हो गया नारियल का दूध। यह दूध इतना हल्का होता है जैसे- गाय का दूध। इस दूध को बूढ़े, बच्चे, जवान कोई भी पी सकता है। इसमें जितना पेस्ट हो उसका आठ गुणा पानी मिलाएं। सोयाबीन का भी दूध बना सकते हैं। सोयाबीन को बारह घंटे पानी में भिगो दें, इसके बाद उसे मिक्सी में पीस लें और उसमें गर्म या ठंडा पानी डालकर, छानकर प्रयोग करें। इस दूध में बेस्ट क्वालिटी का प्रोटीन होता है।

यह हार्ट पेसेंट अर्थात ह्रदय रोगियों के लिए बहुत बढ़िया माना जाता है साथ ही डाइबिटीज वालों के लिए भी यह लाभकारी है। कैल्शियम की कमी होने पर सफेद तिलका दूध पीना चाहिए। सफेद तिल को बारह घंटे तक पानी में भिगोकर, मिक्सी में पीसकर उसमें गर्म-ठंडा पानी डालकर दूध बनाकर लें। मूंगफली को पानी में भिगोकर मिक्सी में पीसकर गर्म या ठंडा पानी डालकर व छानकर प्रयोग करें। इस दूध में भैंस के दूध जैसे गुणों होते हैं। इसमें फैट्स, प्रोटीन और कैल्शियम तीनों चीजें पाई जाती है। सोयाबीन में प्रोटीन ज्यादा है और सफेद तिल में कैल्शियम ज्यादा है। इसलिए अपनी आवश्यकतानुसार दूध बनाकर लें।

सोयाबीन से दही और पनीर दोनों बनाई जा सकती है। इसके लिए 12 घंटे तक सोयाबीन को पानी में भिगोकर मिक्सी में पीस लें और उसमें पानी डालकर उबाल लें। इसके बाद छानकर उसमें दही डालकर दही जमा लें। यदि केवल पीना है तो इसमें गर्म पानी मिलाकर छानकर पी सकते हैं लेकिन कुछ बनानी हो तो इसे उबालना जरूरी है।

ड्राईफ्रूट या अन्य सख्त चीजों को हमेशा भिगोकर ही खाना चाहिए। यदि ड्राईफ्रूट को बिना भिगोए खाते हैं तो उसको हजम करने के लिए आंतों को अधिक एनर्जी लगानी पड़ती है या जब तक वह पचने लायक मुलायम होता है तब तक शौच के रास्ते बाहर आ जाता है। इससे हमने जो ड्राईफ्रूट खाया था वह बिना पचे ही नष्ट हो गया और दूसरा उसको पचाने में आंतों को जो मेहनत करनी पड़ी वह भी बेकार गई। लेकिन यदि हम ड्राईफ्रूट को भिगो देते हैं तो वह मुलायम हो जाता है और उसे पचाने के लिए आंतों को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। इससे शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट भी नहीं बनता।

उदाहरण- काजू को कच्चा खाने में बहुत मजा आता है लेकिन इसके दो नुकसान भी हैं। एक तो इसमें कॉलेस्ट्राल होता है और दूसरा इसका प्रोटीन बहुत सख्त होता है जो आसानी से डाइजेस्ट नहीं होता। बादाम बिना भिगोए कितना भी चबाकर खा लें वह डाइजेस्ट नहीं होता। यदि ड्राईफ्रूट के स्थान पर रोस्टेड लेते हैं तो उसे चबाना तो आसान हो जाता है लेकिन उसका काफी हिस्सा डेड हो चुका होता है। इसके कारण इसका कोई फायदा नहीं होता। जब रोस्टेड को फ्राई करते हैं तो इसका काफी हिस्सा डेड हो जाता है और इसे पचाने में भी परेशानी होती है।

यदि हम कोई सख्त चीजें खाते हैं या ड्राईफूड खाते हैं तो इसका हमें दो प्रकार से नुकसान होता है अर्थात हमारी एनर्जी दो जगह वेस्ट (नष्ट) होती है- पहला यदि हम कोई सख्त चीज खाते हैं तो उसे पचाने के लिए आंतों को बहुत एनर्जी लगानी पड़ती है और दूसरा ठीक से डाइजेस्ट न होने के कारण उससे एनर्जी भी प्राप्त नहीं होती। इस तरह दोनों ही रूपों में सख्त चीज खाने से नुकसान ही है। यही चीज हमारी बॉडी के साथ भी है भोजन हम जितना पकाकर खाते हैं उससे हमारे बॉडी में वेस्ट (गंदगी) तो बढ़ती ही है और उस वेस्टेज को बाहर निकालने के लिए शरीर को जो एनर्जी लगानी पड़ती है वह भी व्यर्थ ही होती है।

जिस दिन फलाहार खाते हैं, हल्का भोजन करते हैं उस दिन आलस्य नहीं आता, शरीर में फुर्ती बनी रहती है, ताजगी बनी रहती है और जिस दिन आप गरिष्ट भोजन करते हैं आपको उस दिन आलस्य आता है। इसका कारण यह है कि जब हम गरिष्ठ भोजन अर्थात अधिक तला-भुना भोजन करते हैं तो शरीर की सारी एनर्जी उसे पचाने में लग जाती है और शरीर को उससे उतनी एनर्जी मिल नहीं पाती जिससे आलस्य और सुस्ती महसूस होती है।
कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन लेने का समय-कार्बोहाईड्रेट सुबह के समय लेना सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि पूरे दिन काम करने के लिए हमे एनर्जी की आवश्यकता होती है। यदि हम शाम के समय कार्बोहाईड्रेट लेते हैं तो लीवर पहले उसे स्टोर करेगा, इसके बाद ग्लूकोज को लाईकोडिन में बदलेगा और फिर दूसरे दिन लीवर उस लाईकोडिन को ग्लूकोज में बदलेगा। इस प्रक्रिया में हमारी काफी एनर्जी वेस्ट होगी और बेकार में लीवर का एक कार्य बढ़ जाएगा।

प्रोटीन शाम के समय लेना चाहिए क्योंकि दिनभर काम करने के दौरान शरीर के सेल्स डेड हो जाते हैं और रात के समय में नए सेल्स बन जाते हैं। यदि प्रोटीन सुबह लेते हैं तो वह भी शरीर में वेस्ट पड़ा रहेगा और ओवरडोज हो जाएगा।

इसलिए कार्बोहाईड्रेट सुबह और प्रोटीन शाम को लेना चाहिए। वैसे इसमें थोड़ा-बहुत आगे-पीछे चल सकता है जैसे- बादाम आदि को सुबह भिगोकर ले सकते हैं। हाई ब्लडप्रेशर वाले व्यक्तियों के लिए बादाम आदि भिगोकर लेना सही रहता है। वैसे उन्हें ड्राई, फ्राइड, रोस्टेड लेना ही नहीं चाहिए। बहुत से लोग फ्राइड की जगह पर रोस्टेड लेते हैं जो शरीर के लिए सही नहीं होता क्योंकि इसमें घी या कोलेस्ट्राल नहीं होता साथ ही पकने के बादपोषक तत्व भी बहुत कम हो जाते हैं। उदाहरण के लिए-चना।

आप यदि चने को भिगो दो तो उसमें अंकुर आ जाएगा, अर्थात यह जीवित भोजन है। लेकिन उसी को भून लो फिर कितना भी पानी डालों उसमें अंकुर नहीं फूट सकता क्योंकि उसका बहुत सारा हिस्सा नष्ट हो गया होता है और केवल थोड़ा-बहुत न्यूट्रिशन बचता है। ऐसे में यदि हम खा ही रहे हैं तो हम पूरा न्यूट्रिशन क्यों खाएं, हम वेस्टप्रोडेक्ट को शरीर में क्यों बनने दें जिसे निकालने के लिए अनावश्यक एनर्जी भी लगानी पड़े।

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