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Monday 8 February 2016

प्रोटीन के स्रोत (Benefits and source of protin)

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प्रोटीन

परिचय-
भोजन का मुख्य आवश्यक तत्व है- प्रोटीन। यही तत्व शरीर की कोशिकाओं अर्थात् मांस आदि का निर्माण करता है। इसकी प्रचुर मात्रा भोजन में रहने से शरीर की कोशिकाओं का निर्माण और मरम्मत आदि का कार्य सुचारू रूप से जीवन भर चलता रहता हैं। प्रोटीन में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा गंधक के अंश मिले रहते हैं। इसमें फास्फोरस भी विद्यमान हो सकता है। प्रोटीन में नाइट्रोजन की अधिकता रहती है। प्रोटीन दो प्रकार का होता है (1) पशुओं से प्राप्त होने वाला (2) फल, सब्जियों तथा अनाज आदि से मिलने वाला। हालांकि शरीर में यदि प्रोटीन अधिक हो जाए तो मल द्वारा बाहर निकल आता है। फिर भी दैनिक आवश्यकता के लिए नियमित प्रोटीन की आवश्यकता शरीर को रहती है लेकिन इस बात की ओर भी ध्यान देना अति आवश्यक है कि आवश्यकता से अधिक प्रोटीन लाभ की अपेक्षा शरीर को हानि भी पहुंचा सकता है परन्तु जब भोजन के बाद भी शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाए तो बाहर से कृत्रिम तरीके से निर्मित प्रोटीन से उस कमी की पूर्ति करना बहुत जरूरी होता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति किलोग्राम वजन के अनुपात से मनुष्य को एक ग्राम प्रोटीन की आवश्कता होती हैं अर्थात यदि वजन 50 किलो है तो नित्य 50 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन में मौजूद पाया जाता है। यदि दोनों को भोजन में एक साथ लिया जाए तो शरीर में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा शामिल की जा सकती है। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि शरीर में जीवनीय तत्वों की कमी न हो तो शरीर रोगों से बचा रहता है। संक्रमणजन्य रोगों से बचाव के लिए प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है।

प्रोटीन के स्रोत-
अण्डे की सफेदी, दूध, दही, पनीर, मछली, मांस, यकृत, वृक्कों और दिमाग में सर्वोत्तम किस्म की प्रोटीन विद्यमान है। दालों, हरी सब्जियों और अनाजों में दूसरे किस्म का प्रोटीन पाया जाता है।
अण्डे में प्रोटीन
क्र.स.
अंड
प्रोटीन
1.
पूर्ण अंडा
13.0 प्रतिशत
2.
अंडे की सफेदी
10.5 प्रतिशत
3.
अंडे की जर्दी
17.0 प्रतिशत
दूध में प्रोटीन
क्र.स.
प्राणी का नाम
प्रोटीन
1.
गाय का दूध
3.4 प्रतिशत
2.
बकरी का दूध
4.4 प्रतिशत
3.
भेड़ का दूध
6.7 प्रतिशत
4.
भैंस का दूध
5.9 प्रतिशत
5.
स्त्री का दूध
1.7 प्रतिशत
प्रोटीन की आवश्यकता
  • बच्चों को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उनका शरीर विकास कर रहा होता है।
  • बुढ़ापे में भी शरीर को प्रोटीन की अत्यधिक आवश्यकता होती है क्योंकि यह एक ऐसी अवस्था होती है जब प्रोटीन जल्दी हजम हो जाता है। इस आयु में यदि प्रोटीन की मात्रा घट गई तो जीवन शक्ति का अभाव हो जाता है। इसलिए इस अवस्था में खाद्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
  • गर्भावस्था में मां के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे को भी प्रोटीन की अत्यधिक आवश्यकता होती है। प्रोटीन गर्भ में पल रहे बच्चे की शरीर के विकास में जरूरी होती है। फिर मां के स्वास्थ्य के लिए तो यह जरूरी है ही। प्रोटीन की कमी इस अवस्था में मां और गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। अत: यह अति आवश्यक है कि गर्भावस्था में माता को प्रोटीनयुक्त खाद्य अधिक से अधिक प्रयोग कराया जाए।
  • जिस प्रकार गर्भावस्था में माता को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है। ठीक उसी प्रकार दूध पिलाने वाली माता को भी प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में प्रोटीन की कमी मां और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। दूध पिलाने वाली माताओं और गर्भवती स्त्री को दोनों प्रकार के प्रोटीन देने चाहिए।
  • रोगों के बाद रोगी के शरीर की शक्ति क्षीण हो चुकी होती है। इस अवस्था में रोगी दीन-हीन व असहाय हो जाता है। रोगी के शरीर के तंतु, कोशिकाएं आदि काफी टूट-फूट चुके होते हैं अत: उन्हें नई जीवन शक्ति और मजबूती प्रदान करने की खातिर अधिकाधिक दोनों प्रकार के प्रोटीन देने चाहिए ताकि शरीर की खोई हुई शक्ति को पुन: प्राप्त कर सके। जिन लोगों को रोगों के बाद या ऑप्रेशन के बाद उचित खाद्य प्रोटीन नहीं मिलते उनके पुन: रोगी हो जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। रोगी का शरीर पहले ही रोग से टूट चुका होता है। उसके बाद खान-पान सही नहीं होने से शरीर की शक्ति और अधिक तेजी से नष्ट होती है और रोग दुबारा आ घेरता है।
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