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Sunday 7 February 2016

healthy Hindi tips (उपवास और ताली बजाने का महत्व)

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उपवास और ताली बजाने का महत्व

उपवास- उपवास का महत्व सभी धर्मों में माना जाता है। जिस तरह उपवास की धार्मिक तौर पर मान्यता है उसी तरह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी यह बहुत खास माना जाता है। उदाहरण- नवरात्रों के दिनों में जब हम पूरे नौ दिनों तक उपवास करते हैं तो उस समय सिर्फ फलाहार का सेवन किया जाता है। इससे क्या होता है कि नौ दिनों तक सिर्फ फलाहार का सेवन करने के कारण शरीर की जो वेस्टेज थी वो बाहर निकल गई तथा बाहर की कोई वेस्टेज शरीर में नहीं बन पाई। इससे क्या होगा कि न तो शरीर में वेस्टेज जमा होगा और न ही किसी तरहहै।

 रोग उत्पन्न होगा। सामान्यतः कोई भी व्यक्ति शरीर में वेस्टेज जमा होने से रोगग्रस्त हो जाता है।
शरीर में जब भी किसी तरह की गड़बड़ी पैदा होती है तो शरीर हमे उसका इंडीकेशन दे देता है और इसमें सबसे पहला इंडीकेशन आता है कि हमारी भूख कम हो गई है। ऐसे में यदि हमे खाने के लिए कहा जाता है तो खाना खाने की बिल्कुल भी इच्छा जागृत नहीं होती। प्रकृति कहती है कि अगर आपकी पचास प्रतिशत भूख कम हो गई हो तो आप एक समय का खाना छोड़ दें। इससे आप जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। लेकिन हम क्या करते हैं कि जिस दिन हमे इस तरह का इंडीकेशन मिलता है, हम उस दिन चटपटी चीजें मंगाकर या बनवाकर खा लेते हैं।
यदि हम यहां पर चूक जाते हैं- जिसे मेडिकल भाषा में बीमारी और नेचरपैथी में शरीर की क्रियाएं बोलते हैं, उस पर ध्यान नहीं देते हैं तो वह बड़ी बीमारी के रूप में प्रकट हो जाता है। यदि पेट में विकार हो गया हो तो विकार होने के बाद भोजन डाईजेस्ट नहीं हो पाएगा। ऐसे में शरीर के विकार को निकालने के दो रास्ते हैं- पहला लैट्रिन के रास्ते और दूसरा मुंह के रास्ते। यदि लैट्रिन के रास्ते विकार को बाहर निकालते हैं तो उसे लगभग 33 फुट लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि इस विकार को मुंह के रास्ते निकालने के लिए लगभग एक फुट की दूरी तय करनी पड़ती है अर्थात उल्टी करनी पडती है।
यदि अपने आप उल्टी आती है तो आने दें और अगर नहीं आती है तो पानी पीकर उल्टी करें। उल्टी जितनी मर्जी हो उतनी करें तो इसका कोई नुकसान नहीं है बल्कि इससे शरीर की गंदगी बाहर निकल जाती है। इसी तरह यदि लूजमोशन हो जाए तो उसे दवाओं से दबाना नहीं चाहिए। भरपेट पानी पीएं और जैसे ही लैट्रिन आए तुरंत ही लैट्रिन जाएं। इस तरह से पूरी आंतें साफ हो जाएगी। लेकिन अक्सर हम दवाईयों के प्रयोग से इसे दबा देते हैं जिससे यह रुक जाता है और शरीर में जमा होकर पुराना रोग बन जाता है। डायबिटीज, स्टोन, ट्यूमर आदि रोग शरीर से निकलने वाले विकार को दबाने का ही नतीजा है। नहीं तो ट्यूमर एक दिन में नहीं बन जाता, वर्षों लगते हैं उसे बनने में।
विश्राम- विश्राम का जीवन में बहुत ही ज्यादा महत्व माना जाता है क्यों ? ऐसा इसलिए होता है कि जब हम पूरे दिन काम करते हैं तो हमारे शरीर के बहुत से सेल्स नष्ट हो जाते हैं और कुछ बाईप्रोडक्ट बनने लगते हैं जैसे- कैमिकल आदि। अब होगा क्या कि हम जितना ज्यादा काम करेंगे हमारे शरीर में उतना ही वेस्टप्रोडेक्ट बनता जाएगा लेकिन पूरी तरह व्यस्त रहने के कारण शरीर को उसे बाहर निकालने का समय ही नहीं मिल पाएगा। इसी को देखते हुए प्रकृति ने विश्राम करने का नियम बनाया है ताकि जब हम विश्राम करें तो हमारी सारी क्रियाएं बंद हो जाए और यह वेस्टप्रोडेक्ट बाहर निकल जाए।
कई बार ऐसा भी होता है कि हम मानसिक या शारीरिक रूप से थक जाते हैं, कई बार काम के बोझ के कारण भी थकावट आ जाती है ऐसी स्थिति में विश्राम कर लेना ही उचित है। विश्राम के लिए श्वासन में लेटना सबसे उपयुक्त माना जाता है। यदि अधिक मानसिक कार्य के कारण तनाव है तो ऐसे में भी श्वासन में लेट सकते हैं। लेकिन श्वासन में आप केवल घर पर ही लेट सकते हैं, ऑफिस में या कहीं बाहर नहीं लेट सकते। ऐसे में श्वासन के स्थान पर अंजनिमुद्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे भी मानसिक तनाव दूर होता है।
इसके लिए अपने हाथों को कटोरी की मुद्रा में बना लें, फिर आंखों को बंद करके एक हाथ से एक आंख को ढकें इससे माथे पर आपकी अंगुलियां आ जाएंगी। अब इसी तरह दूसरे हाथ को दूसरी आंखों पर टिकाएं जिससे माथे के ऊपर आपकी अंगुलियां आ जाएगी। दो से दस मिनट तक इस स्थिति में रहने के बाद आपकी सारी मानसिक परेशानी दूर हो जाएगी। इसके बाद अपने काम को शुरू कर सकते हैं। अब जो नींद है वह रात के समय बहुत जरूरी है। जितनी गहरी नींद आएगी उतना ज्यादा हमारा शरीर डिटॉक्सीफाई होगा और जितना ज्यादा शरीर डिटॉक्सीफाई होगा उतनी ज्यादा फ्रेशनेश रहेगी।
यदि रात को पेशाब करने या पानी पीने के लिए उठ गए तो इसका अर्थ है कि आपको गहरी नींद नहीं आई है। भोजन में जितना ज्यादा वेस्टप्रोडेक्ट होगा उतनी गहरी नींद आएगी लेकिन यह आलस्य वाली नींद होगी। स्टूडेंट, डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट आदि जिन्हें अधिक मानसिक कार्य करना पड़ता है, अधिक देर तक जागना पड़ता है। ऐसी व्यक्तियों को नैचुरल डाईट पर रहना चाहिए ताकि शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट कम बने।
अगर वेस्टप्रोडेक्ट शरीर में कम बनेगा तो नींद भी आवश्यकता से कम आएगी। हम क्या करते हैं कि अक्सर नींद को खत्म करने के लिए चाय-कॉफी का इस्तेमाल करते रहते हैं। लेकिन इसके स्थान पर फलाहार ले लिया जाए तो वेस्टप्रोडेक्ट बिल्कुल ही कम हो जाएंगे और शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होगा। यदि कोई फंक्सन है, शादी-पार्टी और देर रात तक जागना हो तो सुबह से ही फलाहार, जूस आदि लेना शुरु कर दें। इससे न आलस्य आएगा और न ही थकावटहोगी।
मौन की शक्ति- मौन की शक्ति भी अपने आप में खास मानी जाती है। बोलने में शरीर की बहुत एनर्जी लगती है इसलिए अगर कम शब्दों में अपनी बात कही जाए तो ज्यादा अच्छा रहता है। यदि आपको मौन की शक्ति देखनी है तो आप एक दिन मौनव्रत धारण करें और दूसरे दिन देखें कि आप अपने आपमें कितनी फ्रेशनेश महसूस कर रहे हैं। हम बेमतलब में अधिक बोलकर अपनी एनर्जी वेस्ट करते रहते हैं। इसलिए अपनी एनर्जी को बचाने के लिए कम बोलना चाहिए।
ताली बजाना- सिर्फ ताली बजाकर ही किसी भी रोग से छुटाकारा पाया जा सकता है। हमारे देश के मंदिरों में या अन्य स्थानों पर आरती या भजन गाते समय ताली बजाने की जो प्रथा है वह प्राचीन काल के वैज्ञानिकों ने शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए बनाई है। ताली बजाने से न सिर्फ रोगों से रक्षा होती है बल्कि कई रोगों का इलाज भी हो जाता है जैसे- कि ताला खोलने के लिए चाबी की आवश्यकता होती है वैसे ही कई रोगों को दूर करने में यह ताली, चाबी का ही काम नहीं करती है बल्कि कई रोगों का ताला खोलने वाली होने से इसे मास्टर की भी कहा जा सकता है। हाथों से नियमित रूप से ताली बजाकर कई रोग दूर किए जा सकते हैं। स्वास्थ्य की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। ताली दुनिया का सर्वोत्तम एवं सरल सहज योग है और प्रतिदिन यदि नियमित रूप से 2 मिनट भी तालियां बजाएं तो फिर किसी हठयोग या आसनों की जरूरत नहीं होती है।
लगातार ताली बजाने से रक्त के श्वेत कणों को शक्ति मिलती है जिसके परिणामस्वरूप शरीर में रोग-प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि होती है इससे शरीर रोगों के आक्रमण से अपना बचाव कर रोगी होने से बचने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। ध्यान के अभ्यास में भी ताली की भूमिका महत्वपूर्ण है। ध्यान लगाते समय हमारी आंखें तो बंद होती हैं लेकिन कान खुले होते हैं।कान बंद करने का कोई उपाय नहीं है अतः जरा-सी आवाज होते ही हमारा ध्यान भंग हो जाता है। लेकिन आंखें बंद कर हम तेजी से ताली बजाते हैं तो हमारे कान ताली की आवाज सुनने में व्यस्त हो जाते हैं और दूसरी आवाजों की तरफ ध्यान नहीं देते हैं। ऐसे में बाहरी आवाजों से संपर्क टूट जाने के कारण हमारा ध्यान भंग नहीं होता। धीरे-धीरे तालियां बजाने की अवधि बढ़ाकर हम ध्यान की अवधि को भी बढ़ा सकते हैं।
हथेलियों में शरीर के सभी आंतरिक उत्सर्जन संस्थानों के बिंदु मौजूद होते हैं और ताली बजाने से जब इन बिंदुओं पर बार-बार दबाव पड़ता है तो सभी आंतरिक संस्थान ऊर्जा पाकर अपना काम ठीक प्रकार से करने लगते हैं जिससे शरीर स्वस्थ एवं निरोग बना रहता है। ताली बजाने से शरीर का मोटापाकम होता है, विकार नष्ट होते हैं और वात, पित्त और कफ का संतुलन ठीक रहता है।
जिस प्रकार हम किसी कपड़े को साफ करने अर्थात धूल झाड़ने के लिए झटकारते हैं उसी प्रकार ताली बजाने से जो झटके लगते हैं उससे हमारे शरीर की भी सफाई होती है। लेकिन हमें एक बात का ध्यान रखना होगा कि ताली बजाने के इस प्राकृतिक साधन का उपयोग करने का लाभ तभी मिल सकता है जब हमारी दिनचर्या में अप्राकृतिक साधनों का उपयोग कतई न हो। जब हम प्रकृति का नाश करते हैं तो जाहिर है कि प्रकृति भी हमसे बदला लेगी और हमारी प्रकृति को विकृति में बदल देगी, विकृति ही व्याधि अर्थात रोग है और विकारग्रस्त होना ही रोगी होना है।
ताली बजाना मन की प्रसन्नता का भी प्रतीक है। इस कारण खुशी में ताली बजाई जाती है। आप सभी को भी प्रतिदिन प्रसन्न होकर ताली बजाना चाहिए।
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